बंगाल का गाँव 600 वर्षों से ‘माटिया काली’ की पूजा करता
कोलकाता/पूर्वी बर्दवान: पश्चिम बंगाल के एक गाँव में लगभग 600 वर्षों से एक अद्वितीय धार्मिक परंपरा का पालन किया जा रहा है.
जहाँ देवी काली के एक विशेष रूप ‘माटिया काली’ की पूजा एक स्थायी मंदिर के बजाय मिट्टी की वेदी पर की जाती है। यह परंपरा गाँववालों के अटूट विश्वास और पुरानी मान्यताओं को दर्शाती है। यह पूजा दीपावली के अवसर पर आने वाली दीपान्विता अमावस्या यानी कार्तिक माह की अमावस्या की रात को आयोजित होती है।
गाँववालों की मान्यता है कि देवी ने स्वयं उन्हें संदेश दिया था कि उनका कोई स्थायी मंदिर नहीं बनाया जाना चाहिए। इसी दिव्य संदेश का सम्मान करते हुए, गाँव के लोग हर साल अमावस्या की रात को एक अस्थायी वेदी यानी मिट्टी के चबूतरे पर ही देवी माटिया काली की स्थापना करके पूजा करते हैं। यह अनुष्ठान सिर्फ एक पूजा नहीं है, बल्कि यह गाँव की सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। पूजा के बाद, अगले ही दिन इस अस्थायी वेदी को हटा दिया जाता है, जो देवी की इच्छा का पालन करने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
दूर-दराज से आए हजारों श्रद्धालु इस अनोखी पूजा के साक्षी बनने के लिए गाँव पहुँचते हैं। गाँव के बुजुर्गों का कहना है कि उनकी पीढ़ियाँ इस परंपरा को निभाती आई हैं और वे इसे आगे भी जारी रखेंगे। माटिया काली की पूजा बंगाल की समृद्ध और विविध धार्मिक संस्कृति का एक शानदार उदाहरण है, जो यह साबित करता है कि भक्ति के लिए भव्य मंदिरों की आवश्यकता नहीं होती है।



