ल्युपस: जब शरीर का रक्षक बन जाए खुद का भक्षक
ह तब होता है जब शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली गलत तरीके से शरीर के अपने ही अंगों को नुकसान पहुँचाने लगती है।

उदाहरण के तौर पर जैसे घर का वफादार कुत्ता पागल हो जाए और अपने मालिक को ही काटने लगे।
इस बीमारी के पीछे वायु प्रदूषण, कोरोना वायरस, केमिकल, UV किरणें और जंक फूड जैसे कारक अहम भूमिका निभाते हैं।
मुख्य लक्षणों में चेहरे पर तितली के आकार का लाल चकत्ता (malar rash), बाल झड़ना, थकावट, जोड़ों व मांसपेशियों में दर्द शामिल हैं।
अगर शुरुआती लक्षणों को नज़रअंदाज़ किया जाए, तो यह बीमारी किडनी, फेफड़े, दिमाग और आंतों तक को क्षतिग्रस्त कर सकती है।
ल्युपस में शरीर का फेगोसाइटिक सिस्टम यानी मृत ऊतकों की सफाई करने वाली प्रणाली कमजोर हो जाती है।
इससे चेहरे पर सूर्य की किरणों से जलन, मैलर रैश और सूजन जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
मृत कोशिकाएं साफ़ न होने से शरीर गलत प्रकार के एंटीबॉडी जैसे ANA और Anti-dsDNA बनाता है।
ये एंटीबॉडी शरीर के अंगों पर हमला करके “सिस्टेमिक ल्युपस” नाम की गंभीर बीमारी पैदा कर सकते हैं।
UV किरणों से बचाव, सनस्क्रीन, टोपी, छाता, या स्कार्फ का इस्तेमाल करने से बीमारी की शुरुआत रोकी जा सकती है।
झारखंड रुमेटोलॉजी एसोसिएशन ने इस विषय पर विशेष जन-जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया।
इस कार्यक्रम में अध्यक्ष प्रो. (डॉ) आर. के. झा और संयुक्त सचिव डॉ बिंध्यचल गुप्ता प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
मरीज अंजलि बेदिया और सम्मी भगत ने अपनी जीवन गाथा साझा कर लोगों को प्रेरित किया।
डॉ देवनीस खेस ने कहा कि चेहरे पर Malar Rash दिखते ही अलर्ट हो जाना चाहिए।
सही समय पर पहचान और बचाव से ल्युपस जैसी गंभीर बीमारी को रोका जा सकता है।
कार्यक्रम में आम लोगों ने भी सवाल किए, जिन्हें सरल भाषा में विशेषज्ञों ने समझाया।