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सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने से पहले नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक नहीं है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी अपराध का संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज करना मात्र कानून को गति प्रदान करता है।

न्यायमूर्ति [न्यायाधीश का नाम] और न्यायमूर्ति [दूसरे न्यायाधीश का नाम] की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया प्रारंभिक स्तर पर होती है, जहां पुलिस केवल कथित अपराध की सूचना दर्ज करती है। इस स्तर पर, आरोपी व्यक्ति को कोई नोटिस जारी करने या उसका पक्ष सुनने की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच शुरू होती है, और जांच के दौरान आरोपी को अपने बचाव का अवसर मिलता है।

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि एफआईआर दर्ज करने का उद्देश्य अपराध की प्रारंभिक जानकारी को रिकॉर्ड करना और पुलिस को आगे की जांच करने में सक्षम बनाना है। यदि एफआईआर दर्ज करने से पहले नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों को लागू किया जाता है, तो इससे जांच प्रक्रिया में अनावश्यक देरी हो सकती है और सबूतों के साथ छेड़छाड़ की संभावना बढ़ सकती है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया को और अधिक स्पष्टता प्रदान करता है।

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