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प्यार की भूखी: जिन हाथों को पकड़कर चलना सीखा.

उन्होंने ही मोड़ा मुंह, मदर्स डे पर अकेली मांएं

जब दुनिया मदर्स डे मना रही थी, एक शहर के वृद्धाश्रम में बैठी बुजुर्ग महिलाएं अपने उन बच्चों को याद कर रही थीं जिन्होंने उन्हें त्याग दिया था। ये मांएं, जिन्होंने कभी अपने बच्चों के हाथों को पकड़कर चलना सिखाया था, आज अकेली राहों पर चलने को मजबूर हैं। मदर्स डे का दिन उनके लिए खुशी की बजाय अकेलेपन और यादों का बोझ लेकर आया।

इन बुजुर्ग महिलाओं की कहानियां दिल को छू लेने वाली हैं। किसी ने अपने बच्चों को पालने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दी, तो किसी ने उनकी खुशी के लिए अपने सपनों को त्याग दिया। लेकिन आज, जब उन्हें अपने बच्चों के सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत है, वे वृद्धाश्रम के शांत कमरों में अपनों की राह देख रही हैं। उनकी आंखें दरवाजे पर टिकी हैं, शायद कोई अपना आ जाए, प्यार और अपनापन दे जाए।

यह स्थिति समाज के लिए एक गहरा सवाल खड़ा करती है। क्या हम अपनी जड़ों को, जिन्होंने हमें जीवन दिया, इतनी आसानी से भूल सकते हैं? मदर्स डे पर इन अकेली मांओं की याद हमें रिश्तों की अहमियत और बुजुर्गों के प्रति अपने कर्तव्यों को समझने की प्रेरणा देती है। प्यार और सम्मान ही वह सबसे बड़ा तोहफा है जो हम उन्हें दे सकते हैं।

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