नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ (Digital Arrest) के बढ़ते मामलों पर सख्त रुख अपनाते हुए सीबीआई (CBI) से विस्तृत जानकारी मांगी है। शीर्ष अदालत ने इन धोखाधड़ी के मामलों की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार और सीबीआई को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि यह एक नया और खतरनाक चलन है, जहां अपराधी डिजिटल माध्यमों का उपयोग कर लोगों को ब्लैकमेल करते हैं और उन्हें पैसे देने के लिए मजबूर करते हैं। यह साइबर अपराध का एक गंभीर रूप है जो आम जनता के बीच भय पैदा कर रहा है।
न्यायालय ने सीबीआई को विशेष रूप से उन ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ के मामलों की जांच के लिए एक व्यापक योजना के साथ आने का निर्देश दिया है, जिनकी उत्पत्ति विदेशों (offshore locations) से हुई है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे अपराधों की जांच के लिए अंतर्राष्ट्रीय समन्वय और विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी। कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस महानिदेशकों (DGP) को निर्देश दिया है कि वे अपने क्षेत्राधिकार में दर्ज ऐसे सभी मामलों का पूरा ब्यौरा जल्द से जल्द सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करें। इस डेटा में मामलों की संख्या, जांच की स्थिति और आरोपियों की पहचान से जुड़ी जानकारी शामिल होगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ रैकेट पर अंकुश लगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ में अपराधी पीड़ित को वीडियो कॉल पर पुलिस या जांच एजेंसी का अधिकारी बनकर धमकाते हैं और गिरफ्तारी का डर दिखाकर उनसे लाखों रुपये ऐंठते हैं। न्यायालय ने चिंता व्यक्त की है कि इस तरह के अपराधों से न केवल वित्तीय नुकसान होता है, बल्कि नागरिकों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ता है। कोर्ट की मंशा एक केंद्रीयकृत जांच तंत्र स्थापित करने की है, ताकि इन अंतरराष्ट्रीय साइबर अपराध सिंडिकेट्स को सफलतापूर्वक तोड़ा जा सके।



