देहरादून: उत्तराखंड के उच्च-पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील बुग्याल (Bugyals) इन दिनों ट्रेकर्स की बढ़ती भीड़ के कारण गंभीर खतरे में हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि मखमली घास और औषधीय पौधों से ढके ये खूबसूरत हिमालयी घास के मैदान हमेशा के लिए नष्ट हो सकते हैं। यह चिंता मुख्य रूप से चंद्रशिला और तुंगनाथ धाम जैसे लोकप्रिय ट्रेकिंग मार्गों पर देखी जा रही है।
बुग्याल, जो पहले से ही जलवायु परिवर्तन के कारण संकट का सामना कर रहे हैं, अब अव्यवस्थित ट्रेकिंग और मानव गतिविधियों के बढ़ते दबाव के शिकार हो रहे हैं। बड़ी संख्या में ट्रेकर्स और पर्यटक इन नाजुक घास के मैदानों को रौंद रहे हैं, जिससे इन क्षेत्रों की नाजुक मिट्टी और वनस्पति को अपूरणीय क्षति पहुँच रही है। इन बुग्यालों में कई दुर्लभ औषधीय पौधे और जैव विविधता पाई जाती है, जिसका नष्ट होना पूरे हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ा नुकसान होगा। स्थानीय पर्यावरणविदों ने आरोप लगाया है कि पर्यटन को बढ़ावा देने की होड़ में इन संवेदनशील क्षेत्रों के संरक्षण की उपेक्षा की जा रही है।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर तत्काल ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले कुछ दशकों में ये घास के मैदान पूरी तरह से बंजर भूमि में बदल सकते हैं। प्रशासन को इन क्षेत्रों में ट्रेकिंग गतिविधियों को विनियमित करने और पर्यटकों की संख्या को सीमित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, स्थानीय समुदायों को पर्यावरण-पर्यटन (Eco-tourism) के बारे में जागरूक करना भी जरूरी है ताकि वे संरक्षण प्रयासों में सहयोग कर सकें। बुग्यालों की रक्षा केवल उत्तराखंड के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के पर्यावरण संतुलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।



