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उन्होंने बाजार में मिलने वाले आम फर्नीचर की जगह चोर बाजार से लाए गए पुराने टीकवुड फर्नीचर को बहाल किया।
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घर में बांस की ब्लाइंड्स लगाईं और लेमनग्रास से महकने वाला बीज़वैक्स डिफ्यूज़र रखा।
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बुटीक की मालकिन गायत्री सहुकार बताती हैं, “हमें लगा, ये सब कुछ ज़्यादा हमारे जैसा है।”
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उनका ये डिज़ाइन सिर्फ़ स्टाइल नहीं, बल्कि सोच में बदलाव का प्रतीक था।
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अब शहरी भारत में लक्ज़री का मतलब दिखावे से नहीं, ज़िम्मेदारी और पहचान से है।
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ग्रीन होम अब सिर्फ़ एक सपना या पिन्टरेस्ट आइडिया नहीं रहा।
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अर्थ डे 2025 पर विशेषज्ञों ने बताया कि ग्रीन इंटीरियर कैसे बन रहा है नया ट्रेंड।
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सबसे पहले ट्रेंड की बात करें तो वो है बायोफिलिक डिज़ाइन।
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इसका मतलब है—प्रकृति को घर के अंदर लाना।
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भारत का मौसम, संस्कृति और हस्तकला इसे अपनाने के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं।
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स्टूडियो ऑलिव्स क्रे. की संस्थापक अनुराधा अग्रवाल इस बदलाव को करीब से देख रही हैं।
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उन्होंने बताया कि बांस, कॉर्क, री-क्लेम्ड लकड़ी और रीसायकल मेटल जैसे नेचुरल मटीरियल से घरों में गर्मजोशी और असलीपन आता है।
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लोग अब सिंथेटिक और प्लास्टिक से दूर हटकर सस्टेनेबल विकल्प चुन रहे हैं।
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इससे न सिर्फ पर्यावरण को फायदा हो रहा है, बल्कि घर का माहौल भी बेहतर हो रहा है।
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नई पीढ़ी अब घर को अपनी पहचान का हिस्सा मानती है।
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ग्रीन इंटीरियर अब क्लास या अमीरी का प्रतीक नहीं, बल्कि जिम्मेदार नागरिकता का संकेत बन रहा है।
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यह ट्रेंड बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक फैल रहा है।
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विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले वर्षों में ग्रीन डिज़ाइन नॉर्म बन जाएगा।
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भारत इस बदलाव में नेतृत्व कर सकता है, बशर्ते हम अपनी पारंपरिक कला और प्रकृति से जुड़े रहें।
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