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PUSA वैज्ञानिकों की नई बासमती किस्में, किसानों के लिए वरदान.

नई दिल्ली: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित दो नई बासमती चावल की किस्मों ने पानी की खपत को 33% तक कम करने में मदद की है।

ये पहली गैर-जीएमओ हर्बिसाइड टॉलरेंट किस्में हैं, जो पानी की कमी वाले क्षेत्रों में खेती को आसान बना रही हैं।

मुख्य बिंदु:

  1. PUSA बासमती 1979 और बासमती 1985 नाम की दो किस्में विकसित की गई हैं।
  2. इन किस्मों के जरिए किसान सीधे बीज बो सकते हैं, जिससे पानी की बचत होती है।
  3. पारंपरिक खेती में रोपाई के लिए अधिक पानी और श्रम की आवश्यकता होती है।
  4. डायरेक्ट सीडिंग राइस (DSR) तकनीक से 33% पानी की बचत होती है।
  5. वैज्ञानिकों ने इन किस्मों को विकसित करने में 15 साल का समय लिया।
  6. पांच अलग-अलग चरणों में इनकी टेस्टिंग और क्रॉस-ब्रीडिंग की गई।
  7. ये किस्में इमेजेथापायर 10% SL हर्बिसाइड के प्रति सहनशील हैं।
  8. इनसे पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  9. ग्रीनहाउस गैस और मीथेन उत्सर्जन में कमी आती है।
  10. किसानों को मजदूरों पर कम निर्भर रहना पड़ता है।
  11. खरपतवार नियंत्रण के लिए ये बेहद प्रभावी पाई गई हैं।
  12. बासमती चावल की खेती में लागत कम करने में मदद मिलेगी।
  13. पानी की बचत के कारण यह जल संकट से जूझ रहे राज्यों के लिए फायदेमंद होगी।
  14. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह चावल उत्पादन की नई क्रांति ला सकता है।
  15. कृषि विशेषज्ञ इसे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आदर्श मान रहे हैं।
  16. यह धान उत्पादन की परंपरागत विधि की तुलना में अधिक लाभदायक है।
  17. बासमती उत्पादकों के लिए यह एक बड़ी राहत की खबर है।
  18. भारत में धान उत्पादन को अधिक टिकाऊ और कुशल बनाने में मदद मिलेगी।
  19. नई तकनीकों के साथ भारतीय कृषि तेजी से आगे बढ़ रही है।
  20. सरकार भी किसानों को इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

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